हलाम उप-जनजाति संघर्ष | Halam Sub-tribes Clash – The Sky Journal

चर्चा में क्यों ?

उत्तरी त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के साथ संघर्ष के बाद असम में शरण लेने वाले हलाम उप–जनजातियों के लोग त्रिपुरा के उत्तरी जिले में अपने गाँव दामचेरा वापस जा रहे हैं। मिजोरम में चल रहे नृजातीय संघर्ष से बचने के लिए ब्रू शरणार्थी 1997 में त्रिपुरा आए और उत्तरी जिले में बनाए गए 6 राहत शिविरों में रहने लगे। 

कौन हैं हलाम उपजनजाति और ब्रू जनजाति ?

हलाम उप-जनजाति:

■ नृजातीय रुप से हलाम समुदाय (त्रिपुरा में अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत) तिब्बती बर्मी नृजातीय समूह की कुकी चिन जनजातियों से संबंधित है

■ उनकी भाषा भी कमोबेश तिब्बती-बर्मन परिवार से मिलती है

■ हलाम उपजनजाति को मिला कुकी (Mila Kuki) नाम से भी जाना जाता है; हालाँकि, वे भाषा, संस्कृति और जीवनशैली के संदर्भ में कुकी से काफी अलग हैं।

■ हलाम कई उप-वर्गों में विभाजित हैं, जिन्हें बरकी-हलाम (Barki Halam) कहा जाता है।

■ हलाम के प्रमुख उप-वर्गों में कोलोई, कोरबोंग, काइपेंग, बोंग, साकचेप, थांगचेप, मोलसोम, रुपिनी, रंगखोल, चोरोई, लंकाई, कैरेंग (डारलोंग), रंगलोंग, मार्चफांग और सैहमर हैं।

■ 2011 की जनगणना के अनुसार उनकी कुल आबादी 57,210 है और ये संपूर्ण राज्य में पाए जाते हैं।

■ हलाम विशिष्ट प्रकार के टोंग घर" (Tong Ghar) में रहते हैं जो विशेष प्रकार के बाँस और चान घास से बने होते हैं। मैदानी क्षेत्रों में कृषि के अलावा, वे अभी भी झूम कृषि करते हैं, साथ ही अन्य वैकल्पिक कार्यों के अलावा इन दोनों गतिविधियों पर निर्भर रहते हैं।

ब्रू शरणार्थी:

■ ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक क्षेत्रीय समुदाय है जो मुख्यतः त्रिपुरा, मिजोरम और असम में निवास करता है; त्रिपुरा में उन्हें "विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (PVTG) के रूप में मान्यता प्राप्त है।

■ मिजोरम में उन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया जो उन्हें राज्य के मूल निवासी नहीं मानते हैं।

■ 1997 में हुए नृजातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिजोरम के ममित, कोलासिब और लुंगलेई जिलों से भाग गए और बाद में उन्हें त्रिपुरा के राहत शिविरों में ठहराया गया।

■ मिजोरम के साथ अंतर्राज्यीय सीमा से पहले दमचेरा त्रिपुरा का अंतिम गाँव है।

■ तब से लेकर आजतक घर वापसी के आठ चरणों में 5,000 लोग मिजोरम वापस लौट चुके हैं जबकि 32,000 लोग अभी भी उत्तरी त्रिपुरा के छह राहत शिविरों में रह रहे हैं

■ जून 2018 में ब्रू शिविरों के सामुदायिक नेताओं ने मिजोरम में प्रत्यावर्तन (घर वापसी के लिए केंद्र और दो राज्य सरकारों के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, लेकिन शिविर में रहने वाले अधिकांश लोगों ने समझौते की शर्तों को खारिज कर दिया।

■ जनवरी 2020 में केंद्र, मिजोरम और त्रिपुरा की सरकारों और ब्रू संगठनों के नेताओं ने एक चतुष्पक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए।

■ समझौते के तहत गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा में इनके बंदोबस्त का पूरा खर्च वहन करने की प्रतिबद्धता जताई है।

■ इस समझौते के तहत प्रत्येक शरणार्थी ब्रू परिवारों को एक पैकेज का आश्वासन दिया गया जिसमें शामिल हैं

  • एक प्लॉट, 4 लाख रुपये का फिक्स डिपॉजिट, मुफ्त राशन और दो साल के लिए 5,000 रुपये का मासिक वजीफा 
  • इसके अलावा प्रत्येक शरणार्थी परिवार को घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये की नकद सहायता भी

इससे संबंधित मुद्दे क्या हैं ?

■ पूर्वोत्तर राज्यों में न केवल स्वदेशी (Indigenous) और अधिवासी (Settlers) के बीच, बल्कि अंतर-जनजातियों के बीच भी नृजातीय संघर्षो का एक इतिहास रहा है और इसमें एक ही जनजाति के छोटे उपसमूहों के भीतर भी मुद्दे उठते रहे हैं। 

■ त्रिपुरा में ब्रू जनजाति के लोगों को बसाने के फैसले से उनकी नागरिकता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं, विशेष रूप से असम में जहाँ यह परिभाषित करने की प्रक्रिया चल रही है कि कौन यहाँ के मूल निवासी (Indigenous) हैं और कौन नहीं।

■ ब्रू शरणार्थियों को लेकर उठाया गया यह कदम नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत विदेशियों के रहने के अधिकार को भी वैधता प्रदान करता है जिससे वहाँ रह रहे मूल निवासियों और साथ ही पहले से बसे समुदायों के साथ संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।

■ इसके अलावा असम-मिजोरम सीमा पर हालिया हिंसक झड़प के बाद अंतर-राज्यीय सीमा विवाद नए सिरे से सामने आए हैं।

क्या कुछ करने की जरूरत ?

■ ब्रू जनजातियों की वर्तमान स्थिति के मद्देनजर राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चतुष्कोणीय समझौता अक्षरश: लागू हो।

■ हालाँकि, त्रिपुरा में ब्रू शरणार्थियों के पुनर्वास का प्रावधान करने वाले समझौते को गैर-ब्रू लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए लागू किया जाना चाहिए ताकि ब्रू और गैर-ब्रू समुदायों के बीच कोई संघर्ष पैदा न हो।


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