प्राचीन काल में बाल विवाह प्रचलित थी। काफी छोटी आयु में विवाह करने की प्रथा थी। विवाह की आयु विभिन धार्मिक समूहों, जातियों और श्रेणियों में भिन्न-भिन्न पाई जाती है। 18वीं और 19वीं सदी में बाल-विवाह को नियंत्रित करने हेतु प्रयत्न किए गए। राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर तथा ज्योतिबा फुले आदि समाज सुधारकों ने बाल विवाह का विरोध किया। 1929 में बाल विवाह नियंत्रण अधिनियम पारित कर लड़के और लड़कियों की विवाह के समय न्यूनतम आयु क्रमशः 17 और 14 वर्ष रखी गई। 1978 के संशोधन द्वारा लड़के और लड़कियों के लिए विवाह के समय न्यूनतम आयु बढ़ाकर क्रमश: 21 और 18 वर्ष कर दी गई।
विभिन्न प्रकार के सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रयत्नों के बावजूद भारत में कम आयु में विवाह अभी भी होते हैं। 1971 की जनगणना के अनुसार देश के एक-तिहाई से अधिक जिलों में लड़कियों की विवाह के समय औसत आयु 15 वर्ष से कम थी। 'विवाह मेलों' में वधू की औसत आयु 15 वर्ष से कम बताई जाती है। उड़ीसा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बाल विवाह अधिक प्रचलित है।
बाल विवाह के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण इस प्रकार हैं–
■ भारत में विवाह को अनिवार्य माना जाता है। बचपन ही कन्या को भार समझ कर उसका शीघ्र विवाह करने के बारे में सोचा जाने लगता है।
■ किसी-किसी क्षेत्र में विवाह के सहभागी के चुनाव के बारे में नियमों, अभिरुचियों और अपेक्षाओं के दृष्टिगत कम आयु में विवाह कर दिए जाते हैं।
■ स्त्रियों में पवित्रता बनाए रखने की प्रबल भावना भी एक कारण है।
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