ब्रिटिश शासन काल के दौरान दक्षिण भारत में जन्म लेने वाले सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का उद्देश्य 'प्रतिकूल रीति-रिवाजों' का उन्मूलन करना और व्यापक तौर पर लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करना था । इन आंदोलनों में वेद समाज एक महत्वपूर्ण आंदोलन था जिसकी स्थापना श्रीधरलू नायडू एवं केशवचंद्र सेन द्वारा 1864 में मद्रास सिटी में की गई। इस ब्रह्म समाज के आस्तिकवादी विचारों को अपनाया। हिंदूवाद के विवाह एवं अन्य रीति-रिवाजों को इसने धार्मिक महत्व के दृष्टिगत दयनीय बताया। वेद समाज) संप्रदायवाद मत के विरुद्ध था। इसने जातिगत अंतरों को समाप्त करने पर बल दिया, और बहु-विवाह एवं बाल विवाह का विरोध किया जबकि विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया ।
स्वामी नारायण गुरु द्वारा प्रारंभ किए गए आंदोलन का उद्देश्य था जातियों का उन्मूलन करना और जातिगत भेदभाव को समाप्त करना। स्वामी नारायण गुरू ने इजवा, जिन्हें केरल समाज में अछूत समझा जाता था, के विरोध का सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन में रूप परिवर्तित किया । वह इजवा की सामाजिक दशा में सुधार करना चाहते थे जिन्हें समाज में वेशभूषा, रीति-रिवाज एवं धार्मिक कृत्यों में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता था। उनके सामाजिक परिवर्तन के संदेश को, उनके अनुयायियों एवं स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर लोगों को अस्वीकार्य पुरातन प्रथाओं को त्यागने की बात कहकर पहुंचाया।