लोकतंत्र जैसे बहुआयामी शब्द की व्याख्या करते समय इसके किसी न किसी अर्थ अथवा स्वरूप की अनदेखी हो जाने की काफी गुंजाइश रहती है। लोकतंत्र का उदय यूनान में हुआ, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि 500 ई.पू. के आस-पास यूनान में पहली लोकतांत्रिक सरकार बनी थी। 'डेमोक्रेसी' शब्द का उद्भव यूनानी शब्द 'डेमोक्राटिक'(Demokratia) से हुआ है। जो कि दो यूनानी शब्दों 'demos' अर्थात् 'लोग' और 'kratos'अर्थात् 'शक्ति' से मिलकर बना है। इस प्रकार लोकतंत्र का मतलब 'लोगों के द्वारा शासन' होता है जो कि सरकार को सच्चे अर्थों में वैधानिकता प्रदान करता है। इसी कारण हम आज लोकतंत्र के विभिन्न स्वरूप देखते हैं यथा-उत्तर कोरिया में अधिकनायकवादी लोकतंत्र, पाकिस्तान और तुर्की में इस्लामिक लोकतंत्र, अमेरिका में अध्यक्षीय लोकंतत्र और भारत में संसदात्मक लोकतंत्र ।
राजनीतिक दृष्टि से लोकतंत्र राज्य व्यवस्था में सभी की साझेदारी की बात करता है। इसका आर्थिक स्वरूप सभी प्रकार के शोषण के अंत पर बल देता है। सामाजिक दृष्टि से यह सभी प्रकार के भेदभाव मिटाने का प्रयास करता है। प्रो. डायसी ने लोकतंत्र की एक संकीर्ण-सी परिभाषा इस प्रकार की है, लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें समाज का अपेक्षाकृत एक बड़ा अंश शासन कार्यों में लिप्त होता है।
लोकतंत्र से जुड़े हुए दो मुद्दे स्वतंत्रता और समानता में एक अंतर्निहित तनाव देखने को मिलता है जिससे सभी प्रकार के लोकतंत्रों को जूझना पड़ता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रसारित करने पर समानता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और इसी प्रकार समानता को प्रसारित करने पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हानि पहुँचती है। एक अन्य मुद्दा अल्पसंख्यक हितों का है, जैसा कि मान्यता है कि लोकतंत्र अल्पसंख्यक हितों से समझौता करके बहुसंख्यक हितों पर आधारित शासन प्रणाली है यह प्रवृत्ति वहाँ कम देखने को मिलेगी जहाँ पर लोकतंत्र के अंतर्गत मतदाता अधिक परिप और शिक्षित है। इसे वास्तव में स्वतंत्र मीडिया द्वारा पूरक होना चाहिए, जो जनता की राय को संतुलित और किसी भी पूर्वाग्रह से मुक्त रख सके। एक जानकार और जागरूक मतदाता और स्वतंत्र मीडिया सरकार के उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करते हैं, जो कि लोकतंत्र का मूल तत्त्व है।
इसके अलावा, कई ऐसे कारण हैं कि अन्य प्रकार की शासन-प्रणालियों की अपेक्षा लोकतंत्र को बेहतर माना जाता है। मिल ने अपनी पुस्तक 'कंसीडरेशन ऑफ रिप्रेजेन्टेटिव गवर्नमेंट' 1861 में लोकतांत्रिक निर्णय निर्माण के तीन लाभ बताए हैं। पहला, रणनीतिक तौर पर लोकतंत्र नीति निर्माताओं को बाध्य करता है कि वे लोगों के अधिकारों, मतों और हितों के प्रति उत्तरदायी बने रहें, जैसा कि कुलीनतंत्र या अधिनायकतंत्र में नहीं होता है। दूसरा, . ज्ञानमीमांसा के तौर पर लोकतंत्र में विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों की उपस्थिति होती है, जिससे नीति-निर्माताओं को उनमें से सर्वोत्तम जैसे विचारों को समाहित कर नागरिकों के चरित्र निर्माण में सहयोग प्रदान करता है। यह लोकमत का दबाव बनाता है और राजनेताओं द्वारा सत्ता में बने रहने के लिए इसे नजरअंदाज करना संभव नहीं हो पाता। इस संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने लोकतंत्र और अकाल के बीच संबंध को प्रस्तुत किया है, उनका तर्क है कि एक कार्यरत लोकतंत्र में कभी अकाल नहीं आया है। क्योंकि लोकतंत्र में नेता लोगों के प्रति उत्तरदायी होते हैं और वे लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं को अनदेखा नहीं कर सकते । आधुनिक लोकतंत्र का जन्म ब्रिटेन और फ्रांस में हुआ और वहीं से अन्य देशों में इसका प्रसार हुआ। भ्रष्टाचार और अक्षमता, शक्तियों का दुरुपयोग, उत्तरदायित्व की अनुपस्थिति और दैवीय शक्तियों की संकल्पना पर आधारित राजाओं का अन्यायपूर्ण शासन आदि लोकतंत्र के विस्तार में उत्तरदायी कारण हैं।
व्यापक तौर पर, लोकतंत्र राज्य और सरकार की एक शासन-प्रणाली ही नहीं समाज की एक अवस्था भी है । एक लोकतांत्रिक समाज वह है जहाँ सामाजिक और आर्थिक समानता देखने को मिलती है, जबकि एक लोकतांत्रिक राज्य वह है जिसमें नागरिकों को सुलभ और न्यायपूर्ण राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर प्राप्त हो । लोकतंत्र के अर्थ को समझने के लिए कुछ शब्द बार-बार प्रयोग किए जाते हैं, जो निम्न हैं —
- गरीब और हीनतम लोगों के द्वारा शासन ।
- समान अवसर पर आधारित समाज और श्रेणी तथा विशेषाधिकार के स्थान पर व्यक्तिगत गुणों पर आधारित समाज ।
- सामाजिक असमानता को कम करने हेतु कल्याण कार्य और पुनर्वितरण ।
- बहुमत के शासन पर आधारित निर्णय-निर्माण।
- बहुमत 'के शासन की बाधाओं को हटाते हुए अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा।
- लोकप्रिय मतदान हेतु सार्वजनिक कार्यालयों को मतदान के माध्यम से भरा जाना।
वास्तव में, सर्वत्र और आद्योपान्त इतिहास में लोकतंत्र हेतु संघर्ष एक ही समय में जन्म व धन-दौलत की असमानताओं पर आधारित व उनके द्वारा तर्कसंगत सिद्ध राजनीतिक असमानता के विरुद्ध एक संघर्ष रहा है। व्यापक संदर्भ में लोकतंत्र के अंतर्गत बहुत सी विशेषताओं को सम्मिलित किया जा सकता है। लिखित संविधान, विधि का शासन, मानव अधिकार, स्वतंत्र पत्रकारिता और न्यायालय कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का विभाजन इत्यादि को लोकतंत्र के आधारभूत लक्षणों के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। अपने प्रारंभिक स्वरूप में लोकतंत्र का विचार यूनान में आया, जो कि समावेशी राजनीतिक सिद्ध स्वरूप में नहीं था। लोकतंत्र का यूनानी मॉडल महिलाओं, दासों और प्रवासियों को समाहित नहीं करता, इस अर्थ में यह खुद को अलोकतांत्रिक बना देता है। आधुनिक लोकतंत्रों में भी इस तरह के तत्त्व विद्यमान रहे हैं, जैसे कि फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका आदि में भी कुछ वर्ग को मतदान से वंचित रखा गया था, जबकि मताधिकार संपत्तिशाली लोगों को दिया गया था। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति में लोकप्रिय संप्रभुता के साथ-साथ स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की बात की गई। यद्यपि उस समय महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं मिला और फ्रांस में 1944 में जाकर सार्वजनीन व्यस्क मताधिकार लागू किया गया। ब्रिटेन में महिलाओं को मतदान का अधिकार 1928 में मिला, जबकि अमेरिका में 1920 में। इसके बावजूद अमेरिका में रंगों के आधार पर भेदभाव विद्यमान रहा और 1965 में जाकर अफ्रीका-अमेरिकी पुरुषों और महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला। इस संदर्भ में पश्चिमी लोकतंत्रों से तुलना किया जाए तो भारत अधिक प्रगतिशील रहा है क्योंकि भारत में सार्वजनीन व्यस्क मताधिकार 1950 अर्थात् संविधान लागू होने की तिथि से ही प्रभाव में है। इस प्रकार भारत दुनिया में शायद पहला ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहाँ संविधान लागू होने की प्रारंभिक तिथि से ही सार्वजनीन व्यस्क मताधिकार लागू है। सऊदी अरब महिलाओं को मताधिकार देने वाला नवीनतम देश है, जहाँ 2015 के नगर पंचायत के चुनावों में पहली बार महिलाओं ने मताधिकार का प्रयोग किया।
मोटे तौर पर लोगों के मताधिकार के शासन करने के आधार पर लोकतंत्र को प्रत्यक्ष और प्रतिनिधि (representative) लोकतंत्र के रूप में विभाजित किया जा सकता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन में प्रत्यक्ष और अमध्यवर्ती नागरिक सहभागिता पर आधारित होता है। सभी वयस्क नागरिक निर्णय निर्माण प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करने के लिए भाग लेते हैं कि सभी दृष्टिकोणों पर चर्चा हो चुकी है और सर्वोत्तर संभव निर्णय लिया गया है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासक और शासित तथा राज्य और नागरिक समाज के बीच के अंतर को मिटा देता है। प्राचीन यूनानी नगर राज्य का स्वरूप प्रत्यक्ष लोकतंत्र का एक उदाहरण है। समकालीन समय में प्रत्यक्ष लोकतंत्र स्विसकैंटन में पाया जा सकता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र अधिक वैधता सुनिश्चित करता है क्योंकि लोग ऐसे निर्णयों का पालन करना अधिक पसंद करते हैं जो उन्हीं के द्वारा लिया गया है। आधुनिक राज्य की बड़ी जनसंख्या व भौगोलिक स्थिति की वजह से प्रत्यक्ष लोकतंत्र की संकल्पना कठिन हो जाती है। इस समस्या के समाधान के रूप में । प्रतिनिधि लोकतंत्र का विकास हुआ, जो कि सर्वप्रथम 18वीं शताब्दी में उत्तरी यूरोप में प्रयोग में आया। प्रतिनिधि लोकतंत्र, लोकतंत्र का एक सीमित और अप्रत्यक्ष स्वरूप है। यह सीमित है क्योंकि मतदान के माध्यम से नीति निर्माण में लोकप्रिय सहभागिता अत्यंत कम होती है, जबकि यह अप्रत्यक्ष इसलिए है कि लोग अपनी शक्तियों का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से नहीं करते बल्कि अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से करते हैं। दुनिया में अध्यक्षात्मक और संसदात्मक लोकतंत्र के रूप में दो मुख्य प्रकार के प्रतिनिधि लोकतंत्र पाए जाते हैं। अध्यक्षात्मक लोकतंत्र की अपेक्षा संसदात्मक लोकतंत्र अधिक प्रतिनिधित्यात्मक होता है, लेकिन साथ ही कम स्थिर होता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के अपने गुण व अवगुण हैं। इसके गुणों में —
( 1 ) शासन प्रणालियों में सर्वश्रेष्ठ शासन; (2) नैतिक रूप का शासन (3) शिक्षाप्रद ;) (4) अनुक्रियाशील व उत्तरदायी, (5) लोगों को उदार बनाती है; (6) देशभक्ति की भावनाएँ जाग्रत कराती है, (7) कानूनों की अवहेलना की संभावना कम करती है, आदि शामिल हैं। लोकतंत्र के अवगुणों में कुछ मुख्य इस प्रकार हैं- (1) अनुत्तरदायी भीड़ का शासन; (2) अंततः अल्पतंत्रीय व्यवस्था में बदल जाती है; (3) अज्ञानता की उपासना; (4) राजनीतिक दलों का निरंतर हस्तक्षेप बने रहना; (5) खर्चीली व्यवस्था; (6) अशिक्षा ।
लोकतंत्र एक कठिन प्रकार की शासन प्रणाली है। इसमें संदेह नहीं है कि लोकतंत्र सरकार शेष सभी प्रकार की प्रणालियों से श्रेष्ठ है, परंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी सरकार में कमियाँ होती हैं। लेकिन यदि आपकी मोटरकार खराब हो गई हो। तो इसका मतलब यह तो नहीं कि आप बैलगाड़ी से सफर करने लगें। कहने का अर्थ है कि लोकतंत्र का कोई और विकल्प नहीं है। वास्तव में लोकतंत्र की कमियाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमियाँ नहीं हैं, बल्कि वे उनकी कमियाँ हैं, जो लोकतंत्र का उपयोग करते हैं।