हाल में, अमेरिकी भूभौतिकी संघ (AGU) के भूभौतिकी अनुसंधान पत्रों में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया कि ग्रह के घूर्णने का अक्ष मौसम परिवर्तन की वजह से सामान्य से ज्यादा तेजी से घूम रहा है।
पृथ्वी के अक्ष में कैसे बदलाव होता है ?
पृथ्वी के अक्ष का घूर्णन एक रेखा में होता है जो जब सूर्य के चारों तरफ घूमता है तो अपने चारों ओर चक्रण करता है। वे बिंदु जहां ग्रह की सतह को अक्ष काटता है, वे भौगोलिक उत्तर और दक्षिणी ध्रुव होते हैं। ध्रुवों की स्थिति निश्चित नहीं होती है। लेकिन, जब अक्ष इस वजह से घूमता है कि कैसे ग्रह के चारों ओर वितरित पृथ्वी का द्रव्यमान परिवर्तन की वजह से बदलता है। इसलिए, ध्रुवों में बदलाव के साथ अक्ष में बदलाव होता है, और इस गति को "ध्रुवीय गति" कहते हैं। NASA के अनुसार, 20वीं शताब्दी के आंकड़े दिखलाते हैं कि प्रतिवर्ष चक्रण अक्ष का 10 सेमी. स्थानांतरण होता है।
ध्रुवीय गति जलमंडल, वायुमंडल, महासागरों अथवा ठोस पृथ्वी में परिवर्तन की वजह से होती है, लेकिन अब, मौसम परिवर्तन उस स्थिति में बदलाव कर रहे हैं जिसकी वजह से ध्रुव की स्थिति में बदलाव हो रहा है।
कुछ प्रमुख बातें -
- मौसम परिवर्तन की वजह से ग्लेशियरों की अरबों टन बर्फ महासागरों में गल चुकी है जिसकी वजह से पृथ्वी के ध्रुव नई दिशा में चले गए हैं।
- अध्ययन के अनुसार, उत्तरी ध्रुव 1990 के दशक से नए पूर्वी दिशा में चला गया जिसका कारण जलमंडल में बदलाव है।
- इस स्थानांतरण की औसत गति 1995 से 2020 के दौरान 1981 से 1995 की तुलना में 17 गुना तेज थी।
- ये गणना NASA के ग्रेवेटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट (GRACE) मिशन साथ ही ग्लेशियरों की हानि और भूमिगत जल की पंपिंग से प्राप्त उपग्रह आंकड़ों पर आधारित है।
- वैश्विक उष्णता के अंतर्गत तेजी से बर्फ पिघलने ही शायद 1990 के ध्रुवीय स्थानांतरण के दिशा परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह है।
ग्रेवेटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट (GRACE) मिशन के बारे में-
ग्रेवेटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरीमेंट (GRACE) मिशन को मई 1997 में NASA अर्थ सिस्टम साइंस पाथफाइंडर (ESSP) कार्यक्रम के अंतर्गत दूसरे मिशन के रूप में चुना गया था। इसे 2002 में प्रक्षेपित किया गया था। यह संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) और जर्मनी में ड्यूश फोर्सचुंगसांसटाल्ट फुर लुफ्त उंड रीउमफार्ट (DLR) के बीच में संयुक्त साझेदारी है।
Picture Source : Nasa.gov